बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट ने कहा है कि बच्चा गोद लेने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश की पूरी तरह हकदार है। जस्टिस बीडी. गुरु की एकल पीठ ने कहा कि गोद लेने वाली माताओं को मातृत्व अवकाश से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चाहे कोई महिला जैविक रूप से मां बनी हो, सरोगेसी से या फिर बच्चे को गोद लिया हो, सभी को समान रूप से मातृत्व लाभ मिलना चाहिए। मातृत्व केवल जन्म देने से नहीं, बल्कि बच्चे की देखभाल, प्रेम, सुरक्षा और पालन-पोषण से जुड़ा भावनात्मक और संवैधानिक अधिकार है। इस अधिकार से किसी को सिर्फ तकनीकी वजहों से वंचित नहीं किया जा सकता।
यह मामला भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) रायपुर की सहायक प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ा है। महिला कर्मचारी ने 20 नवंबर 2023 को अपने पति के साथ एक नवजात बच्ची को गोद लिया था और उसी दिन से 180 दिन की चाइल्ड एडाप्शन लीव की मांग की थी। लेकिन संस्थान ने एचआर नीति में प्रावधान न होने का हवाला देकर सिर्फ 60 दिन की छुट्टी मंजूर की और शेष अवकाश देने से इंकार कर दिया। महिला ने पहले राज्य महिला आयोग से गुहार लगाई, जहां आयोग ने 180 दिन की चाइल्ड एडाप्शन लीव के साथ 60 दिन की कम्युटेड लीव की अनुशंसा की। इसके खिलाफ आइआइएम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी।
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला कर्मचारी ने अधिवक्ता के माध्यम से बताया कि सिविल सेवा (अवकाश) नियम 1972 के नियम 43-बी (1) के तहत उसे यह अवकाश मिलना चाहिए था। इस नियम में स्पष्ट है कि यदि महिला कर्मचारी एक वर्ष से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है और उसके दो से कम जीवित संतान हैं, तो वह 180 दिन की चाइल्ड एडाप्शन लीव की हकदार होगी। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी संस्था की आंतरिक नीति में इसका उल्लेख नहीं है, तो भी उसे केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए सेवा नियमों का पालन करना होगा।
न्यायालय ने कहा कि महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कोई विशेषाधिकार नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकार है, जो अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(जी) और 21 द्वारा सुरक्षित है। यदि मातृत्व के प्रति समुचित संवेदनशीलता नहीं बरती गई, तो महिलाएं मजबूर होकर कार्यस्थल छोड़ सकती हैं। यह उनके अधिकारों का सीधा हनन होगा।

प्रधान संपादक
