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May 22, 2025 10:24 pm

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रतनपुर में विराजमान है धन वैभव सुख समृद्धि की देवी महालक्ष्मी, जिसे लखनी देवी के नाम से मिली है पहचान,दर्शन मात्र से ही पूर्ण हो जाती हैं मनोकामनाएँ

रतनपुर की तरह इस मंदिर में भी ध्यान देने की जरूरत

मंगल जवारा बोया जाता है जो होता है श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र

जवारा है खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक

छत्तीसगढ़। बिलासपुर जिले के प्रसिद्ध ऐतहासिक एवं धार्मिक नगरी रतनपुर में एक हज़ार साल से भी अधिक माँ महामाया देवी का दिव्य एवं भव्य मंदिर है। रतनपुर कोटा मार्ग पर इकबीरा पहाड़ी पर ही श्री महालक्ष्मी देवी का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। धन वैभव सुख समृद्धि की देवी महालक्ष्मी की बताते है यह मंदिर लगभग 846 साल पुराना है। जिसे लखनी देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्धि मिली।नवरात्रि के पर्व पर यहाँ मंगल जवारा बोया जाता है जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होता है ।रतनपुर की तरह इस मंदिर में भी ध्यान देने की जरूरत अब महसूस होने लगी है ।ट्रस्ट को इस मंदिर के रख रखाव सहित अन्य कार्यों में ध्यान देंना चाहिए ।

इस मंदिर के प्रभारी पंडित भूपचंद शुक्ला बताते हैं कि 11 ईस्वी में लोग अकाल व महामारी से परेशान थे। सरकारी खजाना खाली हो गया था। लोगों में त्राहि त्राहि मचा हुआ था। लोगों की परेशानी व दिक्कतों को देखते हुए राजा रत्नदेव ने धन वैभव और चहुंओर खुशहाली के लिए मंदिर का निर्माण कराया। विधि पूर्वक मां लक्ष्मी की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा कराया और विधि विधान से पूजा अर्चना कराया।

मां महालक्ष्मी का चमत्कार सामने आया। मंदिर निर्माण और मां महालक्ष्मी की प्राण प्रतिष्ठा के बाद वैभव लौट आया। लोगों की खुशियां वापस लौट आई। पंडित शुक्ला बताते हैं कि इसके बाद इस क्षेत्र में कभी अकाल नहीं पड़ा। इस मंदिर को लखनी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर प्रदेश के सबसे प्राचीन लक्ष्मी मंदिर के रूप में भी माना जाता है। रतनपुर में पहाड़ की चोटी पर माता का मंदिर बनाया गया है, जहां 252 सीढ़ी चढक़र हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं।

मंदिर के भीतर बना है श्रीयंत्र


प्राचीन मान्यता के मुताबिक महालक्ष्मी देवी( लखनी देवी ) मंदिर का निर्माण शास्त्रों में बताए गए वास्तु के अनुसार कराया गया है। यह मंदिर पुष्पक विमान जैसे आकार का है।

मंदिर के अंदर श्रीयंत्र बना है, जिसकी पूजा-अर्चना करने से धन-वैभव और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। लखनी देवी का स्वरूप अष्ट लक्ष्मी देवियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का है। जो अष्टदल कमल पर विराजमान है। सौभाग्य लक्ष्मी की हमेशा पूजा-अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति होती है, और मनोकामनाएं भी पूरी होती है।

जवारा है खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक


पंडित शुक्ला बताते हैं कि नवरात्रि के पर्व पर ज्योति कलश के अलावा जवारा बोया जाता है। ज्वारा जैसे-जैसे बढ़ता है और हरियाली बिछी रहती है उसी अंदाज में सुख समृद्धि और वैभव का अंदाजा लगाते हैं। इस वर्ष ज्वारा की हरियाली छायी रही। फसल अच्छा होगा और लोगों में खुशहाली छाई रहेगी।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

अधिमान्य पत्रकार छत्तीसगढ़ शासन

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