रायपुर, 24 फरवरी 2025 – छत्तीसगढ़ में 2200 करोड़ रुपये के बहुचर्चित शराब घोटाले में विशेष पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अनवर ढेबर की ओर से दाखिल धारा 190 सीआरपीसी याचिका को स्वीकार कर लिया है। अदालत के इस फैसले को घोटाले से जुड़ी आठ कंपनियों और व्यापारिक संस्थाओं के खिलाफ न्यायिक कार्रवाई को आगे बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

शराब घोटाले में शामिल कंपनियों पर शिकंजा
कानूनी सूत्रों के अनुसार, इस मामले में जिन कंपनियों को आरोपी बनाया गया है, वे निम्नलिखित हैं:
• वेलकम डिस्टिलरीज़
• भाटिया वाइन मर्चेंट्स
• सीजी डिस्टिलरीज़
• एम/एस नेक्स्ट जेन
• दिशिता वेंचर्स
• ओम साईं बेवरेजेज
• सिद्धार्थ सिंघानिया
• एम/एस टॉप सिक्योरिटीज
जांच एजेंसियों का दावा है कि इन कंपनियों ने अवैध शराब कारोबार से अर्जित धन को मनी लॉन्ड्रिंग और बेनामी लेन-देन के जरिए सफेद करने का प्रयास किया।
विशेष अभियोजन अधिकारी का बयान

राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (SEOIACB) के विशेष अभियोजन अधिकारी डॉ. सौरभ पांडे ने बताया कि विशेष अदालत द्वारा धारा 190 सीआरपीसी के तहत संज्ञान लिया जाना कानूनी प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इससे आगे की जांच और अभियोजन की कार्रवाई कानून के दायरे में और प्रभावी ढंग से आगे बढ़ेगी।
क्या है धारा 190 सीआरपीसी?

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, CrPC की धारा 190 के तहत किसी भी मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह पुलिस रिपोर्ट, शिकायत या अन्य विश्वसनीय सूचना के आधार पर किसी अपराध पर संज्ञान ले सकता है। इस मामले में विशेष अदालत द्वारा संज्ञान लिए जाने का अर्थ है कि अब घोटाले की न्यायिक जांच औपचारिक रूप से शुरू हो गई है।
ED की जांच और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

प्रवर्तन निदेशालय (ED) की अब तक की जांच में 2100 करोड़ रुपये से अधिक की अवैध वसूली, फर्जी बिलिंग और बेनामी कंपनियों के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग का खुलासा हुआ है। जांचकर्ताओं का मानना है कि शराब कारोबारियों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया।
इस मामले में 29 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया था। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा अनवर ढेबर को दी गई जमानत को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बड़े आर्थिक अपराधों में लिप्त आरोपियों को केवल स्वास्थ्य आधार पर राहत नहीं दी जा सकती, जब तक कि कोई सरकारी मेडिकल बोर्ड इसकी पुष्टि न करे।
आगे क्या?
सूत्रों के अनुसार, अब इस मामले में आरोपियों को सम्मन जारी करने, वित्तीय ऑडिट और पीएमएलए के तहत संपत्तियों की कुर्की की प्रक्रिया तेज हो सकती है। जांच एजेंसियों के पास बैंक लेन-देन और कंपनियों के वित्तीय लेन-देन से जुड़े ठोस सबूत हैं, जो घोटाले में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
अदालत की अगली सुनवाई में अन्य प्रमुख आरोपियों की भूमिका की भी समीक्षा की जा सकती है। यह मामला फिलहाल न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है और आगे की कार्रवाई अदालत के निर्देशों पर निर्भर करेगी।
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Author: Ravi Shukla
Editor in chief