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July 8, 2025 1:19 pm

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पति की शराब की लत और गैरजिम्मेदार व्यवहार मानसिक क्रूरता : हाईकोर्ट

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पति की अत्यधिक शराब पीने की आदत, गैरजिम्मेदार रवैया और अय्याशी को पत्नी एवं परिवार के प्रति मानसिक और शारीरिक क्रूरता मानते हुए विवाह को भंग करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को पलटते हुए पत्नी की तलाक याचिका को मंजूर कर लिया।

मामला जांजगीर-चांपा जिले का है, जहां याचिकाकर्ता महिला का विवाह 7 जून 1991 को हुआ था। विवाह के समय वह पढ़ाई कर रही थी और शादी के बाद भी अपनी शिक्षा जारी रखना चाहती थी, लेकिन पति और उसके परिवार ने इसका विरोध किया और अभद्र व्यवहार किया। शादी के बाद तीन बच्चों का जन्म हुआ, लेकिन पति के व्यवहार में कोई सुधार नहीं हुआ।

29 साल तक सहन किया, फिर तलाक का फैसला

महिला ने 29 वर्षों तक अपने परिवार को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किया, लेकिन जब हालात नहीं बदले तो वह बच्चों को लेकर पति से अलग रहने लगी और परिवार न्यायालय में तलाक के लिए आवेदन दिया। हालांकि, परिवार न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में अपील दायर की।

अपील में कहा गया कि पति अत्यधिक शराब पीने का आदी है, कोई काम नहीं करता, गांव की अन्य महिलाओं से अवैध संबंध रखता है और घर में गाली-गलौज और मारपीट करता है।

कोर्ट ने माना मानसिक और शारीरिक क्रूरता

मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रजनी दुबे एवं न्यायमूर्ति एन. के. व्यास की खंडपीठ में हुई। प्रतिवादी पति ने पत्नी के आरोपों का खंडन नहीं किया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि यदि पति अपने दायित्वों का पालन नहीं करता और अत्यधिक शराब पीने की लत में डूबा रहता है, जिससे परिवार की स्थिति खराब होती है, तो यह मानसिक क्रूरता मानी जाएगी।

कोर्ट ने यह भी माना कि पति का गैरजिम्मेदार और अय्याश आचरण पूरे परिवार के लिए सामाजिक बदनामी का कारण बन रहा है। परिवार न्यायालय ने इस पहलू पर विचार नहीं किया और इसीलिए उसका आदेश निरस्त किया जाना उचित है।

बेटी ने भी पिता के खिलाफ दी गवाही

मामले में पत्नी की ओर से दो गवाह पेश किए गए, जिनमें उसकी बालिग बेटी भी शामिल थी। बेटी ने कोर्ट में गवाही दी कि उसके पिता का व्यवहार क्रूर था, इसलिए वह और उसकी मां उनके साथ नहीं रहना चाहते। पत्नी एक शासकीय स्कूल में शिक्षिका है। कोर्ट ने बेटी की गवाही को महत्वपूर्ण मानते हुए उसे तलाक का हकदार करार दिया।

कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए 7 जून 1991 को संपन्न हुए विवाह को भंग कर दिया और पत्नी को तलाक की डिक्री दे दी।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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