Explore

Search

January 22, 2025 9:28 pm

IAS Coaching
लेटेस्ट न्यूज़

*वर्ष 2024 के अंतिम पखवाड़े पर भावभीनी बिदाई ,वर्ष 2025 के नवागमन पर गणमान्य कवियों द्वारा काव्यगोष्ठी*

बिलासपुर/नगर के सांई आनंदम् परिसर के आयोजक कवि एवं साहित्यकार विजय तिवारी के चैतन्य हाल में अंचल के गणमान्य कवियों द्वारा एक सरस और अनुभूतियों से भरी काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें वर्ष 2024 के अंतिम पखवाड़ा को भावभीनी बिदाई तथा 2025 के नववर्षाभिनंदन पर पुलकित कवियों ने वर्ष भर के वैश्विक, स्वदेश के राजनैतिक भौगौलिक,आपसी सौहार्द तो क्लेश और पीड़ा को पिरोते हुए अत्यंत गरिमामय वातावरण में अद्भुत रचनाओं का पठन किया।गणमान्य श्रोतागणों ने इस गोष्ठी का भरपूर आनन्द उठाया।
कार्यक्रम में आमंत्रित कवियों का स्वागत विजय तिवारी ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि, गीतकार अमृतलाल पाठक ने की जबकि मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार बुधराम यादव रहे।
मंच का कुशल संचालन करते हुये हरबंश शुक्ल ने प्रथम कवि के रूप में मयंकमणि दुबे को आमंत्रित किया जो आधुनिकता और विकास के पश्चात भी मनुष्य की विवशता वहीँ की वहीं है, बताया कि हम आधुनिक प्राद्यौगिकी में जीते हुए भी अंगूठा छाप हैं।उनका इशारा बायोमेट्रिक सिस्टम पर था।आज हर जगह अंगूठा दिखाना ही पड़ता है।
इसी तरह नवोदित कवियों से शुरू करते हुए विपुल तिवारी, एन. के. शुक्ला ,राकेश खरे,डॉ.रमेश सोनी, पूर्णिमा तिवारी, अशोक शर्मा, रेखराम साहू,अशरफी लाल सोनी, राजेश सोनार, दिनेश तिवारी,अशोक शर्मा,बसंत पांडे ‘ ऋतुराज ‘,विनय पाठक, शैलेंद्र गुप्ता,राजेन्द्र तिवारी,
हूपसिंह राजपूत,राजेन्द्र रुंगटा, आदि ने अपनी-अपनी रचनाओं से समां बांधा। तत्पश्चात् आयोजक विजय तिवारी ने स्थूल देह जनित विकारों के रहते मोक्ष की कल्पना को असंभव बताते हुए नववर्ष पर विकारों को त्यागने का आह्वान काव्य के माध्यम से किया।
हरबंश शुक्ल ने पिता के सम्मान को इन पंक्तियों में व्यक्त किया- ” गौरव ये कि पिता के पास में मैं हूँ/अनंताकाश मेरा पर पिता के हाथ में मैं हूँ।”वरिष्ठ गीतकार एवं मुख्य अतिथि बुधराम यादव ने कहा-एक ही भावधारा के दो व्यक्ति सृष्टि में नहीं मिलते,अतः अपना किरदार शानदार निभाइए।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ गीतकार अमृतलाल पाठक ने जीवन को सत्कर्म से जोड़ते हुए भावार्थ कहा कि मेरे कर्म का बहीखाता साफ सुथरा है इसीलिये विष भी मेरे लिए अप्रभावी है क्योंकि मेरा नाम ही अमृत है, यह जीवन में यश और अपयश को विभाजित करने की अद्भुत कला है।
इस अनूठे काव्य गोष्ठी के आनंद में श्रोता अंतिम समय तक झूमते रहे।अंत में आभार प्रदर्शन मयंकमणि दुबे ने किया।

Ravi Shukla
Author: Ravi Shukla

Editor in chief

Leave a Comment

Read More