बिलासपुर। हाई कोर्ट ने एक ही जमीन की बार- बार रजिस्ट्री के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस संजय के. अग्रवाल व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि पहली बिक्री को ही वैध माना जाएगा। संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा-48 के तहत प्राथमिकता का सिद्धांत लागू होता है। डीविजन बेंच ने खरीदार को 16 लाख 26 हजार रुपए लौटाने का आदेश दिया है।
दुर्ग निवासी राहुल सिन्हा और योगेश कुमार पांडे ने दुर्ग निवासी लाल बिहारी मिश्रा से 15 जुलाई 2016 को रजिस्टर्ड सेल डीड के जरिए एक प्लाट खरीदा था, इसके एवज में बिक्री मूल्य, पंजीयन और अन्य खचों को मिलाकर 16 लाख 26 हजार 724 रुपए दिया। इसके दो साल बाद पुलिस ने उन्हें नोटिस भेजा। तब पता चला कि इसी जमीन मूल मालिक सुधाकर राव गायकवाड़ पहले ही 4 जुलाई 2002 को भरत लाल नामक व्यक्ति को बेच चुके थे। जिस जमीन पर वे मालिकाना हक समझ रहे थे उसका टाइटल पहले ही दूसरी पार्टी के नाम वैध रूप से जा चुका था। इसी धोखाधड़ी के खिलाफ सिन्हा और पांडे ने कोर्ट में सिविल सूट दायर कर अपनी राशि वापसी की मांग की। जिला कोर्ट ने पाया कि पहली बिक्री वैध होने के कारण बाद में की गई बिक्री की पूरी प्रक्रिया अमान्य है। कोर्ट ने उनके पक्ष में डिक्री देते हुए मिश्रा को 6 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ 16 लाख 26 हजार 724 रुपए लौटाने के आदेश दिए। इसके खिलाफ मिश्रा ने हाई कोर्ट में अपील की। इसमें तर्क दिया कि उन्होंने सेल डीड के जरिए जमीन खरीदी थी, उनके साथ धोखा हुआ है।
विवादित जमीन मूल रूप से सुधाकर राव गायकवाड़ के नाम थी। गायकवाड़ ने यह जमीन पहली बार 4 जुलाई 2002 को रजिस्टर्ड सेल डीड के जरिए भरत लाल को बेची। भरत लाल पहले क्रेता और टाइटल होल्डर थे।भरत लाल ने राजस्व रिकॉर्ड में नाम दर्ज नहीं कराया, जिसका फायदा उठाते हुए गायकवाड़ ने जमीन एच लक्ष्मी को बेच दी। एच लक्ष्मी ने यही जमीन लीला बिहारी मिश्रा को बेच दी, बाद में मिश्रा ने इसे राहुल सिन्हा और विकास पांडे को बेच दिया।
हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि कोई व्यक्ति अपने पास मौजूद अधिकार से बेहतर टाइटल नहीं दे सकता। पहला खरीदार ही वास्तविक मालिक होगा, इसके बाद की सभी बिक्री स्वतः अमान्य मानी जाएंगी। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही मानते हुए पेश अपील को खारिज कर दिया है।
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