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September 6, 2025 7:20 am

रायगढ़ कथक घराने को पहचान दिलाने वाले डॉ. बलदेव के शोध को मिला ऐतिहासिक महत्व

रायगढ़। रायगढ़ कथक घराने की पहचान को देशभर में स्थापित करने का श्रेय विद्वान और लेखक डॉ. बलदेव को जाता है। 1979-80 में उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से इस घराने को परिभाषित किया और पहली बार इसे शास्त्रीय परंपराओं में अलग स्थान दिलाने का प्रयास किया। संगीत पत्रिका (सितम्बर 1980) में प्रकाशित उनका लेख “रायगढ़ कथक घराना ऐतिहासिक महत्व का माना जाता है।

कला समीक्षक स्वर्गीय अनिल कुमार की प्रेरणा से लिखे गए इस लेख को चक्रधर कला परिषद में पढ़ा गया जहाँ इसे व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। बाद में भोपाल के 1979 कथक शिविर में भी इसकी सराहना हुई। हालांकि, लेख के कुछ हिस्से प्रमोद वर्मा के नाम से पूर्वग्रह 34 में प्रकाशित होने पर विवाद भी हुआ लेकिन डॉ. बलदेव की मौलिकता को संगीतज्ञों और नृत्यविदों ने स्वीकारा।

डॉ. बलदेव की शोध यात्रा

डॉ. बलदेव ने देश के अनेक सुप्रसिद्ध नर्तकों को देखा, संगीत-नृत्य का गहन अध्ययन किया और रायगढ़ के नर्तकों की विशिष्ट शैली को पहचान दी। आलोचक नंदकिशोर तिवारी के अनुसार रायगढ़ के सांगीतिक महत्व को प्रकाश में लाने का भगीरथ प्रयास डॉ. बलदेव ने किया। वहीं, डॉ. राजू पांडेय लिखते हैं कि रायगढ़ की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए डॉ. बलदेव के अन्वेषणपरक लेख अनिवार्य स्रोत हैं।

उनकी पुस्तक रायगढ़ का सांस्कृतिक वैभव आज भी क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास की मानक सामग्री मानी जाती है। इसके अलावा उन्होंने छत्तीसगढ़ के कवियों पर संकलन, प्रगतिवाद पर पुस्तक तथा पंत और निराला जैसे कवियों पर महत्वपूर्ण लेखन किया।

प्रसिद्ध व्यंग्यकार विनोद साव के एक पोस्ट पर नासिर अहमद सिकंदर ने टिप्पणी करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ के रामचंद्र शुक्ल कहे जा सकने वाले डॉ. बलदेव को उनके योगदान के अनुरूप मान-सम्मान नहीं मिला, जबकि वे केवल सीधे-सादे, बड़े लेखक थे।

कला-जगत का मानना है कि रायगढ़ कथक घराने को राष्ट्रीय पहचान दिलाने और सांस्कृतिक इतिहास को संरक्षित करने में डॉ. बलदेव की भूमिका आधारभूत रही है।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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