मनेंद्रगढ़ ( संवाददाता प्रशांत तिवारी)छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ वनमंडल अंतर्गत कुंवारपुर वन परिक्षेत्र से शहडोल (मध्य प्रदेश) वन विभाग को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। तेंदुए की खाल की तस्करी कर रहे दो शिकारियों को पकड़ने में शहडोल और जनकपुर वन विभाग की संयुक्त टीम को उल्लेखनीय सफलता मिली। इस कार्रवाई ने न सिर्फ दोनों राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्र में हो रही तेंदुआ तस्करी का भंडाफोड़ किया, बल्कि स्थानीय वन अमले की सतर्कता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

शहडोल वन विभाग को पहले से सूचना थी कि कुछ संदिग्ध व्यक्ति तेंदुए की खाल को बेचने के प्रयास में घूम रहे हैं। सूचना मिलते ही शहडोल वन विभाग की टीम सक्रिय हुई और जब आरोपियों से कड़ाई से पूछताछ की गई, तो उन्होंने खुलासा किया कि वे एमसीबी जिले के जंगलों से तेंदुए का शिकार कर खाल मध्य प्रदेश में तस्करी करते हैं।
मनेंद्रगढ़ वनमंडल ने दिखाई तत्परता
शहडोल वन विभाग की सतर्कता के बाद तत्काल मनेंद्रगढ़ वनमंडल से संपर्क किया गया। वनमंडलाधिकारी के मार्गदर्शन में जनकपुर परिक्षेत्र के रेंजर चरणकेश्वर सिंह ने एक विशेष दल गठित किया। इसके बाद शहडोल वन विभाग के साथ मिलकर दो टीमों ने कुंवारपुर वन परिक्षेत्र में सघन छापेमारी शुरू की।
यह संयुक्त कार्रवाई मंगलवार को सुबह 11:30 बजे आरंभ हुई, जो कई घंटों तक चली। दोनों टीमें अलग-अलग स्थानों पर सक्रिय रहीं। कुंवारपुर परिक्षेत्र के सगरा और गिरवानी गांवों में वन विभाग ने छापा मारा।
आरोपियों से तेंदुए की खाल और मूंछ बरामद
गिरवानी गांव निवासी रामनरेश उर्फ लटकू पिता रामदास के घर के पास एक गड्ढे से तेंदुए की खाल बरामद की गई, जिसे उसने मिट्टी में दबाकर छिपा रखा था। खाल की स्थिति देखकर अनुमान लगाया गया कि यह शिकार हाल ही में किया गया था।
वहीं, सगरा गांव निवासी रामप्रसाद उर्फ लालजी पिता जीवनलाल के घर से तेंदुए की मूंछ बरामद की गई, जिसे बाजार में भारी दाम पर बेचा जाता है। इसके साथ ही शिकार में उपयोग की जाने वाली अन्य सामग्री भी जब्त की गई है।
वन विभाग की कार्रवाई से हड़कंप

जनकपुर के रेंजर चरणकेश्वर सिंह ने पुष्टि की कि दोनों आरोपियों के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर अग्रिम कार्रवाई की जा रही है। यह सफलता शहडोल और जनकपुर वन विभाग की समन्वित रणनीति का परिणाम है।
इस कार्रवाई के बाद क्षेत्र में हड़कंप मच गया है। स्थानीय लोगों के बीच दबी जुबान में यह भी चर्चा है कि आखिर कब से कुंवारपुर वन परिक्षेत्र में वन्यजीवों का शिकार हो रहा था, और क्या संबंधित अधिकारी इसकी जानकारी से अनजान थे? या फिर जानबूझकर उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से आंख मूंद रखी थी?
सवालों के घेरे में वन अमला
वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बने कड़े कानून और भारी भरकम बजट के बावजूद यदि किसी वन परिक्षेत्र में तेंदुए की खाल जैसी प्रतिबंधित वस्तु बरामद हो रही है, तो यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं विभागीय लापरवाही है। यदि स्थानीय अधिकारी समय पर चौकसी बरतते तो यह तस्करी संभव न हो पाती।
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि राज्य और अंतर्राज्यीय स्तर पर वन विभाग के बीच बेहतर समन्वय और सतर्कता से ही वन्यजीवों की तस्करी पर लगाम लगाई जा सकती है। वहीं, यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि इस पूरे प्रकरण में स्थानीय वन अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होती है, और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।
वन्यजीव संरक्षण पर फिर खड़ा हुआ बड़ा प्रश्न
वन विभाग द्वारा की गई इस कार्रवाई ने एक तरफ जहाँ विभाग की साख को थोड़ी राहत दी है, वहीं दूसरी ओर यह प्रश्न भी खड़ा कर दिया है कि जंगली जानवर कब तक सुरक्षित रहेंगे? तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजाति के जानवरों का इस प्रकार शिकार होना वन्यजीव संरक्षण के लिए खतरे की घंटी है।
फिलहाल, शहडोल और जनकपुर वन विभाग की संयुक्त कार्रवाई ने यह संदेश जरूर दिया है कि यदि ईमानदारी और सूझबूझ से काम लिया जाए, तो तस्करों की कमर तोड़ी जा सकती है। पर सवाल यह भी है कि क्या स्थानीय अधिकारी अब सतर्क होंगे, या आने वाले दिनों में फिर कोई खाल किसी गड्ढे से निकलेगी?

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