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September 8, 2025 6:55 pm

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जातिगत जनगणना पर कांग्रेस की दोहरी नीति बेनकाब: सत्ता में रहते किया इनकार, विपक्ष में बन गई पैरोकार

मनीष अग्रवाल, पूर्व एल्डरमैन, भाजपा की कलम से

बिलासपुर छत्तीसगढ़ ।जातिगत जनगणना को लेकर देश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। कांग्रेस और उसके समर्थित दलों के नेता आज जिस मांग को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं, वही मांग उन्होंने स्वयं सत्ता में रहते ठुकरा दी थी। अब जब केंद्र की भाजपा सरकार ने राष्ट्रहित में जातिगत जनगणना की दिशा में कदम बढ़ाया है, तब राहुल गांधी, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव जैसे नेता इसे अपनी ‘राजनीतिक जीत’ बताने में लगे हैं।

2011: जब कांग्रेस ने जातिगत जनगणना से किया इनकार

वर्ष 2011 में जब देश में जनगणना की प्रक्रिया चल रही थी, तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह थे और सरकार में सपा व राजद जैसे दलों की भी भागीदारी थी। उस वक्त भारतीय जनता पार्टी ने संसद में बाकायदा अनुरोध किया था कि इस जनगणना में जातिगत आंकड़ों को भी शामिल किया जाए। भाजपा की ओर से गोपीनाथ मुंडे और हुकुम देव नारायण सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने संसद में जोरदार ढंग से यह मुद्दा उठाया।

लेकिन कांग्रेस सरकार के शीर्ष नेताओं राहुल गांधी, कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम ने इस मांग को नकारते हुए दलील दी कि जातिगत आंकड़े जुटाना व्यवहारिक नहीं है। उनका कहना था कि लोग स्वयं अपनी जाति बताते हैं, किसी भी गणनाकार को उसका प्रमाण मांगने या जांचने का अधिकार नहीं होता। इन दलीलों के आधार पर कांग्रेस ने भाजपा की इस मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया।

ओबीसी नेताओं को दरकिनार करने का इतिहास

उसी दौरान कांग्रेस सरकार ने जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को “अल्पसंख्यक संस्थान” घोषित करते हुए वहां से एससी-एसटी कोटा समाप्त कर दिया। यही नहीं, लालू प्रसाद यादव जैसे ओबीसी नेताओं को कैबिनेट से बाहर का रास्ता भी दिखाया गया। कांग्रेस को उस वक्त लगने लगा था कि उत्तर भारत का बड़ा मुस्लिम वोट बैंक उसके साथ है, तो ओबीसी वर्ग को साधने की जरूरत नहीं।

2014 के बाद बदली रणनीति, अब जातिगत जनगणना की मांग करने लगे वही नेता

2014 में जब नरेंद्र मोदी एक ओबीसी नेता प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने और भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला, कांग्रेस मात्र 45 सीटों पर सिमट गई। सत्ता से बेदखल होते ही कांग्रेस ने रणनीति बदली और विदेशी सलाहकार जॉर्ज सोरोस जैसे लोगों के सुझाव पर फिर से जातिगत जनगणना की मांग उठाने लगी।

अब वही नेता, जिन्होंने 2011 में इसे असंभव करार दिया था, कह रहे हैं कि भाजपा ने उनकी पुरानी मांग मान ली। लेकिन देश को यह सच्चाई नहीं भूलनी चाहिए कि जब सत्ता में रहने का अवसर था, तब कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने देशहित में जरूरी मांग को ठुकरा दिया।

भाजपा की नीति स्पष्ट, जातिगत जनगणना देशहित में आवश्यक

आज जब मोदी सरकार ने समाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए जातिगत जनगणना की पहल की है, तब विपक्ष इसका श्रेय लेने की होड़ में है। लेकिन सच्चाई यह है कि भाजपा ने यह मांग तब की थी जब कांग्रेस, सपा और राजद सत्ता में थे। उस समय इन सभी दलों ने इस मांग को सिरे से नकार दिया था।

देश को जातिगत जाल में उलझाकर सत्ता की रोटियां सेंकते रहे हैं विपक्षी नेता

अब जबकि केंद्र सरकार इस विषय पर गंभीर है और पारदर्शी तरीके से काम कर रही है, विपक्षी दलों को अपने अतीत की ओर भी देखना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि केवल सत्ता की लालसा में जनहित की बातों को टालना और फिर वही बातें दोहराना, उनकी राजनीतिक नीयत पर सवाल खड़े करता है।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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