ये कैसा मुआवजा, समझ नहीं आया
रेल हादसा में आधिकारिक बयान पर भरोसा करें तो अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है। रेलवे ने फौरीतौर पर मुआवजा की घोषणा भी कर दी है। मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया है। चेक भी सौंप दिया है। भयावह घटना के बाद मुआवजा को लेकर चर्चा छिड़ी हुई है। आपको याद होगा,हाल के महीने में रेलवे इलाके में जोरदार आंदोलन चला था। करंट से एक ठेका कर्मी की मौत हो गई थी। हाई कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ गया था। मुआवजा कितनी मिली आप सब जानते हैं। फिगर बताने की जरुरत नहीं है। रेल हादसे में जिनके परिवार का सदस्य हमेशा-हमेशा के लिए चला गया उसे मात्र 10 लाख रुपये। रेलवे का ये कैसा मुआवजा है। इसे लेकर अब चर्चा भी छिड़ गई है। वर्षों पुराने इस फार्मेट को बदलने की चर्चा भी शुरू हो गई है। सवाल यह है कि दिल्ली और गार्डनरीच तक बात पहुंचाए कौन। ऐसा कोई है क्या जो इन बातों को वहां तक पहुंचा सके।
कहां है सुरक्षा कवच, क्यों नहीं बना पाए
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे किस मामले में कीर्तिमान रचता है या फिर गढ़ता है, ये तो आप भी अच्छी तरह जानते और समझते ही होंगे। माल लदान के जरिए कमाई में हमारे जोन का जवाब नहीं है। कोरोना संक्रमण काल में तो पूछिए मत। पैंसेजर ट्रेनों के पहिए जाम कर इस कदर कोल की ट्रांसपोर्टिंग। हाय पैसा,हाय पैसा और हाय पैसा। दोनों हाथों से जमकर कमाई। कमाई इतनी की कोरोना के गुजरने के बाद भी रेल अफसर हिसाब नहीं लगा पा रहे थे। ऐसी कमाई भी किस काम की। जिस जोन से भरपूर कमाई हो रही है और दूसरे इलाके के कर्मचारियों का पेट पाल रहा हो, जोन एक अदद सुरक्षा कवच के लिए तरस रहा है। चलिए इसका जवाब हम आप पर छोड़ते हैं। कमाऊपूत और इस मार्ग से यात्रा करने वालों के साथ तो यह नाइंसाफी ही है। सुरक्षा कवच रहता तो लालखदान की भयावह घटना को रोकी जा सकती थी। लोगों की जान तो बच जाती। परिवार से जुदा तो नहीं होते। अफसरों को तो मालगाड़ी की कमाई गिनने से फूर्सत नहीं है। कमाई गिनने से फूर्सत मिले तभी तो सुरक्षा कवच की याद आएगी। चलिए तब तक इंतजार ही कर लेते हैं।
इनके कामकाज के तरीकों की दाद देनी होगी
मंगलवार शाम चार बजे के बाद जो कुछ घटा वह बेहद की खराब रहा। लालखदान की घटना से बिलासपुर को तो झकझोरा ही प्रदेश और देश को भी झकझोर कर रख दिया। लालखदान में मौत का मंजर और चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। रेलवे और प्रशासन की टीम पूरी मुस्तैदी के साथ रेस्क्यू में जुटी हुई थी। कलेक्टर संजय अग्रवाल व एसएसपी रजनेश सिंह पूरे समय मौके पर डटे रहे। पूरे समय के साथ ही पूरी रात। जब तक रेस्क्यू पूरा नहीं हो गया तब तक। रेलवे के अफसरों ने जब कहा कि सर सब हो गया। तब कलेक्टर व एसएसपी ने वहां से कूच किया। रेस्क्यू के बीच अब इन दोनों आला अफसरों के कामकाज के तरीके और मानवीय पहलुओं की जमकर चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया में भी इसी अंदाज में स्पेस मिल रहा है।कोई उनके हौसले की तारीफ कर रहा है कोई उनके मानवीय पक्ष की। लोग कह रहे हैं कि अगर हर अफसर इस समर्पण से काम करे, तो भरोसा खुद-ब-खुद लौट आए।कभी-कभी किसी दर्दनाक घटना के बीच ही उम्मीद की एक किरण दिख जाती है लालखदान की रात भी ऐसी ही थी।
कहते हैं ऐसे वक्त में असली परीक्षा होती है प्रशासन की संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी की। और कहना होगा कि इस बार कलेक्टर और एसएसपी ने वह मिसाल पेश की जिसकी उम्मीद लोग अक्सर करते तो हैं, पर देखने को कम मिलती है।यही है असली नेतृत्व जो आदेश नहीं देता बल्कि खुद सबसे आगे खड़ा होता है।
फैसले से किनका होगा बल्ले-बल्ले
बिलासपुर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। ई संवर्ग के व्याख्याता अब प्राचार्य के पद पर पदोन्नत हो जाएंगे। अब शिक्षा विभाग के अफसर व्यस्त हो जाएंगे। काउंसलिंग फिर पोस्टिंग। पढ़ने में जो कुछ सरल और सीधा सा लग रहा है, दरअसल वैसा होने वाला नहीं है और ना ही इतना सीधा और सरल है। टी संवर्ग में जो कुछ हुआ वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। पोस्टिंग के नाम पर क्या कुछ नहीं हुआ। शिक्षक संगठन के नेताओं ने आवाज तो बुलंद की पर हुआ कुछ नहीं। अफसरों की मनमर्जी चली। जब मनमर्जी चलती है तो जेब कहां से खाली होती है और जादू की तरह किसी दूसरे की जेब उसी अंदाज में भर भी जाती है। आगे-आगे देखते जाइए जनाब होता है क्या। अब तो खेल शुरू होगा। कुछ देखने को मिलेगा और बहुत कुछ पढ़ने को भी।
अटकलबाजी
रेल हादसा के बाद रेलवे के अफसरों को सोशल मीडिया में वायरल हो रहे एक वीडियो ने क्यों परेशान कर दिया। परेशानी के बीच वीडियो जारी कर सफाई क्यों देनी पड़ गई।
ई कैडर के लेक्चरर अब प्रिंसिपल बनेंगे। काउसंलिंग के पद पोस्टिंग। पोस्टिंग को लेकर इनकी धड़कनें क्यों बढ़ी हुई है। कुछ को अब इंतजार क्यों नहीं हो रहा है।
प्रधान संपादक





