बिलासपुर। हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में फूड इंस्पेक्टर की बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है। याचिकाकर्ता भारतीय नौसेना में तकरीबन 5 साल तक उत्कृष्ट सेवा दे चुके हैं। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि जिस आधार पर उन्हें नौकरी से हटाया गया, वह उचित नहीं है। उन पर दो आपराधिक मामले वर्ष 2002 में नाबालिग रहने के दौरान दर्ज हुए थे। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उन्हें सभी अयोग्यताओं से छूट मिलती है।
पेंड्रारोड निवासी प्रहलाद प्रसाद राठौर की भूतपूर्व सैनिक कोटे से 30 अगस्त 2018 को फूड इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति हुई थी। 15 मार्च 2024 को पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट के आधार पर उन्हें सेवा से हटा दिया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि उनके खिलाफ पुराने आपराधिक प्रकरण दर्ज थे, इसलिए वे सरकारी सेवा के लिए अयोग्य हैं। राठौर ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सिंगल बेंच ने जनवरी 2025 में उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने डिवीजन बेंच में अपील की।
अपील में तर्क दिया कि दोनों मामले वर्ष 2002 में उनके नाबालिग रहते दर्ज हुए थे। पड़ोसी से मामूली झगड़े का मामला वर्ष 2007 में लोक अदालत में समझौते के बाद मामला बंद हो चुका था। है। इसके अलावा इस मामले में कोई जांच भी नहीं हुई। कोर्ट की ओर से दोषसिद्धि भी नहीं है। वहीं, बर्खास्तगी से पहले उनका पक्ष नहीं सुना गया, न ही उनके जवाब मांगा गया।
अपील में यह भी बताया कि भारतीय नौसेना में लंबी सेवा के दौरान उनके चरित्र और आचरण को अनुकरणीय और बहुत अच्छा दर्ज किया गया है। मामले में दिए गए फैसले में अपराध से पहले वे नाबालिग थे। मामले 2002 के थे और 2007 में ही निपटारा हो चुका था। 2018 में नौकरी मिलने से पहले वे पूरी तरह समाप्त हो चुके थे। ऐसे पुराने और मामूली मामलों के आधार पर चरित्र को अयोग्य बताना मनमाना है।
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