उप राष्ट्रपति का चुनाव और चेहरे को लेकर लगा रहे अंदाज
देश के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया है। राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। अब चुनाव को लेकर देशभर में चर्चा छिड़ी हुई है। राजनीति को नजदीक से देखने और पल-पल की खबर रखने वाले लोग भी इससे अछूता नहीं है। देश में चुनाव हो और राजनेता और इससे ताल्लुक रखने वाले चुप बैठ जाएं। भला ऐसा हो सकता है क्या। आपका जवाब नहीं में ही रहेगा। सो चर्चा छिड़ी हुई है, नाम भी सामने आने लगे हैं। जैसा कि हर चुनाव में होता है, पार्टी अपना पत्ता बाद में फेंकती है पहले तो पब्लिक ओपनियन लेती है। ऐसा कुछ-कुछ इस चुनाव को लेकर भी हो रहा है। गंभीर दावेदारों के नाम भी सामने आने लगे हैं। दो पूर्व सीएम, भाजपा के कद्दावर नेताओं की चर्चा जमकर छिड़ी हुई है। इसमे दम भी है और जिनका नाम सामने आ रहा है वह दमदार भी। दो पूर्व सीएम,वर्तमान में दो सक्रिय राजनीति में। पब्लिक और प्रशासन के बीच। जाहिर है नाम वालों का ही तो नाम होगा। राजनीति में समीकरण और लक दोनों का साथ रहना जरुरी है। एक ठीक है और दूसरा नहीं तो कुर्सी मिलते-मिलते रह जाती है। छत्तीसगढ़ के पालिटिक्स में हम सब यह देख रहे हैं।
रील वाले रईसजादे और राजनीति
नेशनल हाईवे में महंगी गाड़ियों को कतार में खड़ी कर सड़क जाम करना और रील बनाना। इससे भी आगे ड्रोन के जरिए शूटिंग कराना। यह तो वाकई गजब हो गया। छत्तीसगढ़ में इन दिनों रील और रोल का चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगा है। देखिए ना, सरगुजा में डीएसपी पत्नी ने प्राइवेट गाड़ी में नीली बत्ती लगाकर जमकर प्रभाव का प्रदर्शन किया। बोनट पर बैठकर केक काटना, नीली बत्ती वाली गाड़ी में बैठकर रील बनाना। यह सब क्या है। न्यू रायपुर की सड़कों पर स्टंटबाजी। यह सब क्या है। बिलासपुर एनएच एपीसोड पर आते है। पुलिस कप्तान को अच्छदी तरह पता था, सरगुजा की घटना सामने थी, लिहाजा तुरत दान महाकल्याण की तर्ज पर गाड़ियों की जब्ती, जुर्माना सब कुछ करा दिया। बात अदालत तक पहुंची उसके पहले सबकुछ ओके। सीनियारिटी और सिंसीयारिटी का यही तो फायदा है।
ये तो गजब हो गया, ऐसा भी होता है क्या
आरटीआई ने एक बड़ा राज उगला है। राजधानी रायपुर के जंगल सफारी के बाड़े में सात साल से पल रही दीपआशा नाम की मादा वनभैंस की क्लोन नहीं है। जिस प्रोसेस के तहत उदंती सीतानदी की मादा वनभैंस आशा से क्लोन तैयार किया गया, उससे वनभैंस की जिराक्स कापी पैदा नहीं हो सकती। वन विभाग के अफसर 11 साल से यही दावा कर रहे हैं कि दीपआशा वन भैंस है। पर यह क्या। मेडिकल रिपोर्ट ने वन अफसरों की पोल खोलकर रख दी है। सवाल यह उठ रहा है कि वन विभाग के अफसरों ने यह सब जानबुझकर किया या फिर अनजाने में। कारण चाहे जो,सरकारी खजाने को भी इस दौरान जमकर नुकसान पहुंचाने का काम हुआ है। 11 साल में दीपआशा के बहाने तीन करोड़ चपत। यह राशि किसके जेब में गई, यह तो जांच का विषय हो सकता है। वो तो भला हो आरटीआई एक्टिविस्ट की जिन्होंने गोरखधंधे का खुलासा करा ही दिया। ना जाने वन अफसर और कितने सालों तक दीपआशा के नाम पर सरकारी खजाने को दीमक की तरह चांटते रहते। घोटाला करना वालों का जवाब नहीं। बस बहाने चाहिए। जो बहाना सामने दिख गया उसे ही जरिया बना लिया।
कुर्सी में बैठकर रोपा लगाने वाली मेम
कुर्सी का नशा भी अजीब है। एक बार मिल जाए तो पता नहीं क्या-क्या ना करा दे। सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में रील बनाना और घरेलू से लेकर पब्लिक डोमेन के कामकाज को वीडियो और फोटो के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर करने की परंपरा सी चल पड़ी है। महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री भी मानसून सत्र से फूर्सत होते ही अपने गांव की ओर कूच कर गई। खेती किसानी का मौसम है। खेतों में रोपा लगाने चली गईं।बात यहां तक ठीक है। आगे जो कुछ हुआ वह वह काम कम दिखावा ज्यादा ही लगा। तभी तो सोशल मीडिया में कमेंट्स भी उसी अंदाज में हो रहा है। दरअसल मंत्री ने खेत में चेयर लगवा ली और चुयरे में बैठकर रोपा लगाते फोटो शूट करा लिया। खेतों में भी सोशल इंजीनियरिंग नजर आया। अपने साथ-साथ सभी के लिए चेयर बिछवा दी। मंत्री को भला कौन समझाए कि चेयर में बैठकर रोपा नहीं लगाते।
अटकलबाजी
रील एपीसोड में जो कुछ हुआ वह सभी को पता है। हम जो बता रहे हैं या आप जो अटकल लगा रहे हैं उसमें एक बात ना आप समझ रहे और ना ही हम। किन दो नेताओं को आने वाले दिनों में रील एपीसोड का बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
दो महंगी गाड़िया, एक ही दिन, एक ही घर के लिए शो रूम से निकली। शहरवासी और जानने वाले गणित लगा रहे हैं कि जनाब को आखिर कौन सा अलीदीन का चिराग मिल गया है जो रातों-रात दो महंगी गाड़ी खरीद डाला। ईडी भी है और ईओडब्ल्यू भी। पता नहीं कौन पहले आए।

प्रधान संपादक