बिलासपुर। हाईकोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग के सैकड़ों शिक्षकों दोबारा अलग अलग पेश 27 याचिकाओं में दो वर्ष की सेवा पूरा करने पर उन्हें शिक्षा विभाग में संलग्न कराने की मांग को लेकर पेश याचिकाओं पर निर्णय पारित करते हुए अपने आदेश में कहा कि अथॉरिटी के फैसले से सिर्फ नाखुशी, या सिर्फ़ बराबरी का दावा, अपने आप में कोर्ट के खास अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि, जब तक केस करने वाले यह साबित नहीं कर देते कि, किसी कानूनी या मिले हुए अधिकार का उल्लंघन हुआ है या फैसला लेने की प्रक्रिया में मनमानी, भेदभाव, या कोई और संवैधानिक कमी नहीं दिखाते, तब तक कोर्ट दखल नहीं देगा। कोर्ट ने कहा कि, ज्यूडिशियल रिव्यू सिर्फ़ प्रक्रिया की जांच करने तक सीमित है, न कि फैसले के फायदे की, इसलिए गैर-कानूनी, प्रक्रिया में चूक, या बिना सोचे-समझे की कमी चुनौती को बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसके साथ पेश सभी याचिकाओं को खारिज किया गया है।
याचिकाकर्ता सूर्यकांत सिन्हा, दिनेश कुमार सहित अन्य विभिन्न वर्षों में शिक्षाकर्मी वर्ग 3, वर्ग 2 एवं वर्ग 1 के पद में नियुक्त हुए एवं कार्यरत हैं। उन्होंने याचिका में शासन को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वे 23. जुलाई 2020 के
आदेश के आधार पर स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट में उनके संलगीकरण्र के मामलों पर विचार करने का निर्देश दें।
जस्टिस एके प्रसाद ने सुनवाई उपरांत अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ताओं की यह मांग कि उन्हें दो साल की सर्विस पूरी करने की तारीख से सीनियारिटी और कॉन्सिकुएंशियल फ़ायदे मिलें, मंजूर नहीं है। सीनियरिटी हमेशा कानूनी नियमों और किसी खास कैडर की सर्विस में आने की तारीख से तय होती है। पिटीशनर्स को 2018 की पॉलिसी के तहत आठ साल की सर्विस पूरी करने पर ही स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट में शामिल किया गया था। उनके दावे को पूरा करने के लिए सीनियरिटी में बदलाव नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा करने से न सिर्फ 2018 के नियमों का उल्लंघन होगा। दो साल की सर्विस पूरी होने की तारीख से काल्पनिक एब्जॉर्शन, सीनियरिटी का री-फिक्सेशन, पे स्केल का री-डिटरमिनेशन, और 2020 पॉलिसी के तहत एब्जॉर्ब हुए टीचरों के साथ पैरिटी की मांग करने वाली प्रार्थनाएं पूरी तरह से बेबुनियाद हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया।
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