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November 1, 2025 1:26 am

कानाफूसी

भीड़ जुटाने में उर्जा खपा रहे भाजपाई

इन दिनों भाजपा और कांग्रेस की राजनीति में कुछ अलग ही चल रहा है। भाजपा के दिग्गज नेता भीड़ जुटाने में अपनी एनर्जी खपा रहे हैं। आप भी यह पढ़कर अचरज में पड़ गए होंगे कि मोंथा के कोहराम के बीच भाजपा को ऐसा क्या सूझा कि भीड़ जुटाने में जुट गई है। एक नवंबर को राज्योत्सव है। छत्तीसगढ़वासी रजत जयंती मना रहे हैं। रजत जयंती के अवसर पर एक राजधानी रायपुर में ऐतिहासिक पल आने वाला है। जिसका सबको इंतजार है। नए विधानसभा भवन का लोकार्पण। सियासतदारों के लिए अहम तो है, साथ ही हम सबके लिए भी उतना ही अहम और बेहद खास। प्रदेश की राजनीति के संचालन का केंद्र बिंदु और विकास की गति तेज करने का माध्यम। रजत जयंती वर्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक  नवंबर को नए विधानसभा भवन का लोकार्पण करेंगे व महती सभा को संबोधित करेंगे। जाहिर है पीएम की प्रतिष्ठा के अनुरुप सभा स्थल में भीड़ जुटानी होगी। यह जिम्मेदारी सत्ताधारी दल की  है। सो मोंथा के कहर के बीच कुर्सीधारी भाजपाई पसीना बहाते दिखाई दे रहे हैं। कुर्सी मिली है तो इतना पसीना बहाना बनता ही है।

संगठन सृजन का दौर,बस अब जल्द होगा पूरा

मोंथा के बीच कांग्रेसी घर में दुबके बैठे हैं और दिल्ली से जारी होने ने वाले आदेश की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। कांग्रेस में संगठन सृजन का जोरदार दौर चल रहा है। अब कह सकते हैं कि  दौर आखिरी है। कभी भी दिल्ली से लिस्ट ओपन हो सकता है। दावेदारों सेकर दांव चलने वाले तो यही कह रहे हैं कि इस बार दिल्ली की ही चलेगी। किसी और की नहीं। कुछ यह  भी कहते सुनाई दे  रहे हैं। यह  कांग्रेस है। कुछ भी संभव है। सब कुछ संभव है। लाबिंग भी और कोटा सिस्टम भी। कोटा सिस्टम चला तो  संगठन सृजन का चेहरा कैसे सामने आएगा। एक ने बताया, बिलासपुर,कोरबा,जांजगीर, सक्ती और जीपीएम नेताजी को,नार्थ छत्तीसगढ़ बाबा साहब को, दुर्ग से लेकर राजनादगांव का इलाका पूर्व सीएम और बस्तर दीपक के हवाले। ऐसा सृजन हुआ तो फायदे में कौन रहेंगे। यही तो सियासत है, कभी नफा और कभी नुकसान। फिर भी अच्छा ही है, जीरो से कुछ तो अच्छा रहेगा। 

लंबे अरसे बाद राज्योत्सव, आएगा मजा

कोरोना संक्रमणकाल से लेकर एक साल पहले तक राज्योत्सव को लेकर शहरवासियों में उत्साह दिखाई नहीं दिया। या यूं कहें कि उत्साह तो था पर सरकार ने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा। हर पांच साल में चुनाव का दौर भी आ जाता है। देर आए दुरुस्त आए। इस बार पूरे तीन दिन का उत्सव होगा। रजत जयंती वर्ष में हम सब भी उत्सव का सहभागी बनेंगे। लोक कलाकारों को बड़ा मंच मिलेगा। उत्सव में सहभागिता निभाने का बड़ा अवसर भी सामने आएगा। छिपी प्रतिभा को निखारने का अवसर तो मिलेगा,सबसे बड़ी बात रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि स्थानीय कलाकारों के लिए उत्सव वाकई अच्छा हो। उत्सव के दौर में राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के बारे  में जानकारी मिलेगी। योजनाओं को  नजदीक से देखने काा अवसर मिलेगा। 

निष्कासन खत्म करने के पीछे क्या थी वजह

नगर निगम चुनाव के दौर में भीतरघात करने वाले कांग्रेसजनों को संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया था। लंबे समय से  कुछ नामचीन चेहरे पार्टी से बाहर थे। पार्टी कार्यालय का दरवाजा उनके लिए बंद सा हो गया  था। संगठन सृजन के दौर में समर्थकों ने भैया से  गुहार लगाई। भैया यही समय है, प्रेशर पालिटिक्स  खेल दीजिए। सबकुछ ओके हो जाएगा। अपनों की मनुहार और दबाव के आगे झूके भैया ने सीधे दिल्ली फोन घनघनाया। एक दौर दो दौर और बात बन गई। महीनों से आउट हुए समर्थक दिल्ली से  इशारा मिलते ही इन हो गए। इन होते ही चर्चा शुरू हो गई कि अभी तो कोई चुनाव भी नहीं है, फिर ऐसी क्या मजबूरी आ गई है कि लेना पड़ गया। एआईसीसी महासचिव की सिफारिश को तो मानना पड़ेगा ना। दिल्ली के लिए महासचिव की सिफारिश ही बड़ी हो जाती है। बात भले ही भीतरघातियों की हो। 

अटकलबाजी

 संगठन सृजन के दौर में कांग्रेसी दिग्गजों को वाकई कोटा मिला तब क्या होगा।  कौन फायदे में रहेंगे। अगर ऐसा हो गया तब जिले व शहर  में कौन-कौन कुर्सी संभालते नजर आएंगे।

लालबत्तीधारी भाजपा नेता भीड़ जुटाने पसीना बहा रहे हैं। दिग्गज घर बैठे हैं। नाराजगी किस बात की और क्यों।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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