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December 27, 2024 10:56 am

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आज वट सावित्री व्रत ,पढ़िए वरिष्ठ साहित्यकार डा.पालेश्वर प्रसाद शर्मा की रचना “वट-सावित्री बारात की बड़ी महिमा”

वट मूल स्थित ब्रह्मा, वत मध्ये जनार्दन तु शिवोदेवः सोनिया वट संप्रीता….

बर के रूख म देवी-देवता मन रथै, एकरे र बट-बर पेड़ ल देवता रूख मानके पूजा करर्थे, पानी चढ़ायें, बरके जरी म ब्रह्मा मझोत म बिस्नु अऊ बरौं (पेड़ की दाढी) म सावित्री देवी के निवास है, रुख राई म बर, पीपर, लीम बेल, परसा, मउहा, कउहा, सरई, सागौन, डूमर, आमा, अमली, मनखे बर ओखद अमृत हवा-पानी देथे, बिसहर वायु ले बचायें, वातावरनल सुद्ध सफ्फा करर्थे- घाम म छांव, बरसात म छावा, जाड़ में खाँधरा, बीमार बर फॉक म दूध, बतासा म पुस्टई, बर्रो म सोभा। कर्थे बर-तरी सती सावित्री अपन सत पुत्र-परताप ले अपन सेंदुर सोहाग मरे सत्यवान ल जिया डारे रहिस, एकरे बर जेठ अमावस के वट सावित्री बरसाईत बर के साइत निरजला उपवास रथे अऊ ब्रह्मा, जम देवता, सावित्री के संग बर-पेड़ के सूत-लपेट के भांवर पारथै… बर देवता के चौदह भांवर-फेरी सूत लपेट के पूजा करय…… कई झन नौनी मन एक सौ आठ फेरी लेथें…. अऊ पिपरमेंट, रेवड़ी, चाकलेट चढ़ा के चोचला करथे… अवैधव्यं च सौभग्य म देहिल मय सुब्रते… मतरा ले अरध देना चाही, बर के जरी म माटी पानी खचित डजरय, भीजे चना, रुपिया, सोहाग के झपुलिया-सौभाग्य पिटारी-सेंदूर, टिकली, काजर-चूरी, साड़ी लुगरा, गहना-गरिया-अपन सासु-सास ल देके- पांव परय असीस ओली म झोंकय। एकर एकठन किस्सा हावय मदू देस के राजा अस्वपति नाव के रहिस, राजा के कोना लड़का-पिचका नई रहिस, राजा बड़ धर्मात्मा रहिस फेर संतान बर जप करिस, त एक ठन नोनी जनमिस, नोनी के नाव सावित्री रखे गईस, जन नोनी बाढ़ के बिहाव लाइक होस…त सावित्री सवांगे स्वयंबर बर छोट बर निकरिस, सत्यवान् अपना अंधरा दाई-ददा के सेवा करय…. ओला देखके सावित्री सत्यवान संग बिहाव करे बर संकलप कर लेईस… जब नारद मुनी ल गम मिलिस…. त नारद राजा ल बतावत है के सत्यवान् बने गुनी हे, फेर ओकर अवरदा कमती है…. याने एक बछर ओकर जिनगानी है… फेर सावित्री जुच्छा हाथ हो जाही। नारद मुनी के वचन पहली बेर ले सावित्री बर-असत होय है। दूसर बर… सती हव करके… निहीं मानिस… हिंदू कड़ना एक्के बर सेंदूर सोहाग लेथे…… सेंदूर के छुआ एक बार…… तिरिया तेल हमीर हठ चर्दै न दूजी बार… राजा जंगल म जाके कड़ना दान दाइज डोर सहित कर देईस। अब सती सावित्री बिहान ले अपन सास-ससुर पति के सेवा कर… बछर पूरे लागिस त सावित्री उपास रहिके अपन धनी संग जंगल लकड़ी काटे बर गईस….. सत्यवान टंगिया धर के रुख म चदिस के चक्कर आगे…. मूड-पीरा म व्याकुल सत्यवान् सावित्री के केरा म ढलंग गे… वोती सत्यवान् के चांउर पुरिस… के साच्छात् जमराज भईसा के असवार आगे अऊ सत्यवान के जीव रक्छाडू (दक्षिन) कती ले के चल दिहिस… फेर सती घलाय पाहू पाहू पाय लागिस तब जमराज बरदान देके लहुटे बर कहिस… पहिली वरदान सास-ससुर के आंखी दिख

जाय…तमिल ले सती जमराज ल नई छौंदत है….दान मा बर कहिस…. – आ हाथ देखके… अरे अरे.. सती सतवंतिन सत्य औ नारद के वचन लबारी….चार चूरी बर, सेंदूर सोहाग बर, देस के सुवारी अपन ध नी बर-पति के जीवन बर-वट सोनिया के निर्जला उपास रहय।

डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा

विद्यानगर, बिलासपुर छ.ग.

CBN 36
Author: CBN 36

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