बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म के मामले में 10 साल की सजा काट रहे युवक को बरी कर दिया है। जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा के सिंगल ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि पीड़िता घटना के समय 18 वर्ष से कम उम्र की थी। साथ ही, लड़की की सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित होने और जबरदस्ती का कोई साक्ष्य नहीं मिलने पर आरोपित को दोषमुक्त किया गया। कोर्ट द्वारा आदेश दिया गया है कि अगर किसी अन्य केस में जरूरी नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए।
गिरफ्तारी के समय 19 वर्षीय आरोपित तरुण सेन पर आरोप था कि उसने 8 जुलाई 2018 को एक लड़की को बहला-फुसलाकर अपने साथ भगा ले गया और कई दिन तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। लड़की के पिता ने 12 जुलाई को शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद पुलिस ने 18 जुलाई को लड़की को दुर्ग से बरामद किया। विशेष न्यायाधीश (अत्याचार निवारण अधिनियम), रायपुर की अदालत ने 27 सितंबर 2019 को आरोपित को आइपीसी की धारा 376(2)(एन) और पाक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत 10-10 साल की सजा और जुर्माने से दंडित किया था। दोनों सजाएं साथ चलने के आदेश दिए गए थे। युवक पिछले करीब 6 साल से जेल में बंद था। याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने पाया कि, स्कूल के दाखिल-खारिज रजिस्टर में पीड़िता की जन्मतिथि 10 अप्रैल 2001 दर्ज है, परंतु उसकी खुद की गवाही के अनुसार वह 10 अप्रैल 2000 को जन्मी थी। अभियोजन पक्ष कोई ठोस दस्तावेज, जैसे जन्म प्रमाणपत्र या हड्डी की जांच (आसिफिकेशन टेस्ट) प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे पीड़िता की सही उम्र साबित हो सके। पीड़िता ने कोर्ट में यह स्वीकार किया कि वह आरोपित के साथ अपनी मर्जी से गई थी और उनके बीच प्रेम संबंध थे। मेडिकल रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की चोट या जबरदस्ती के निशान नहीं मिले। कोर्ट ने कहा कि जब पीड़िता की उम्र नाबालिग सिद्ध नहीं होती और वह सहमति से आरोपित के साथ गई थी, तो इस मामले में दुष्कर्म या पाक्सो की धाराएं नहीं बनतीं। यह एक स्पष्ट रूप से प्रेम प्रसंग और सहमति से भागने का मामला है। कोर्ट ने आरोपित की सजा को रद्द करते हुए उसे सभी आरोपों से बरी किया और तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है।

Author: रवि शुक्ला
अधिमान्य पत्रकार छत्तीसगढ़ शासन