बिलासपुर। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के बजाय राज्य सरकार द्वारा पुराने नियमों व अधिनियमों के तहत दिव्यांगजनों को आरक्षण देने पर दोनों पैर से दिव्यांग डॉ. रितेश तिवारी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता डॉ. रितेश तिवारी आयुर्वेद स्नातक है और छत्तीसगढ़ में बीएल कैटेगरी के तहत नौकरी की पात्रता रखते हैं। अधिवक्ता संदीप दुबे व ज्योति चंद्रवंशी के जरिए पेश याचिका में इन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 1995 के अधिनियम के तहत दिव्यांगों को आरक्षण दिया जा रहा है। इस अधिनियम में तीन कैटेगर में पांच प्रकार के दिव्यांगता का उल्लेख है। इसी आधार पर चिन्हांकित तीन कैटेगरी के दिव्यांगों को ही शासकीय सेवा में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता दुबे ने बेंच को बताया, वर्ष 2016 में पार्लियामेंट ने दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम में बड़ा बदलाव कर दिया है।
कोर्ट को बताया गया कि पार्लियामेंट द्वारा पारित अधिनियम का छत्तीसगढ़ में पालन नहीं किया जा रहा है। अधिनियम के तहत समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा भर्ती के लिए निकाले जाने वाले विज्ञापन में पदों के अनुसार दिव्यांगजनों को आरक्षण देने के लिए अब तक कमेटी का गठन नहीं किया गया है और ना ही पद चिन्हांकित किया गया है। दिव्यांगजनों को सरकारी नौकरी में आयु सीमा में भी छूट नहीं दी जा रही है। जिस कानून को संसद ने निरस्त कर दिया है उसके तहत छत्तीसगढ़ सरकार नौकरियों में भर्ती कर रही है। तर्कों को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

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